Name Change Affidavit Format


अगर आपका भी नाम के शब्द में कुछ गड़बड़ी हो गयी और आपके अगर जानना चाहते है कि कैसे उसका सुधार होगा तो आप एक अच्छे ब्लॉग को देख रहे है आपका अपना CourtCaseBook

नाम कि गड़बड़ी अधितर आपको छात्र/छात्रा के मार्कशीट एवं जीवन बीमा व अन्य बैंकिंग सेक्टर इत्यादि जगहों पर होती है | 

नोट :- सभी प्रकार के नाम में बदलाव से संबंधित शपथ - पत्र 100/- रु के स्टाम्प पेपर व निजी शपथ पत्र फॉर्म जो वकील संघ के द्वारा संचालित होती है उसमे सरकार द्वारा 100/- टिकट व वेलफेयर लगा के किया जाता है | जिसपर कार्यपालक पदाधिकारी/ Executive Magistrate से हस्ताक्षर करना होता है | 

यहाँ उदाहरण के लिए राहुल कुमार सिंह उर्फ़ राहुल राज के व्यक्ति का नाम लिखा गया है आप यहाँ अपना नाम जिसके नाम से भी जीवन बीमा में बीमा पॉलिसी है | अपने आधार कार्ड के अनुसार लिख सकते है | 

Executive Magistrate, Raxaul, East champaran
Affidavit
I, Ram Singh alias RamRaj Son of Dashrath R/o Ayodhya Dist- Uttar Pradesh do here by solemnly affirm and declare as follows :- 
1. That my name is Ram Singh alias RamRaj I known by both name and both are my name.
2. That I am Policy holder of LIC Policy Bond No. xxxxxxx00 in which my name Ram Singh mention but in my Aadhar Card No. xxxx xxxx  0001 my name mention RamRaj. 
3. That Ram Singh and Ram Raj both are the name of same person who is son of Dashrath.
4. That I solicit this affidavit for mention my name Ram Raj with Ram Singh in LIC Policy Bond and made payment of Policy. 

Deponent (Applicant Signature)
Declaration 
I, Rahul Kumar Singh alias Rahul Raj again declare that all the contents of this affidavit are true in the best believe of my knowledge. 


जीवन का एक मात्र सही मार्ग :- (केवल एक ही ईश्वर - श्री कृष्ण)

श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप


भगवत गीता श्रीकृष्ण की वह अमृत स्वरूप शब्द है केवल पढ़ने मात्र से ही आपके जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर आपके समक्ष उद्दृत हो जायेंगे | किसी को, यदि भगवत गीता पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैदिक ज्ञान तथा विश्व के समस्त शास्त्रों के अध्ययन को पीछे छोड़ देता है | 

अध्याय एक - श्लोक में (1)  - धृतराष्ट्र अपने दास संजय (संजय के पास दिव्य दृष्टी थी जिससे वह धृतराष्ट्र को युद्ध कि जनकारी देते है)  से धर्मभूमि में युद्ध कि इच्छा से एकत्र हुए अपने एवं पान्डु पुत्रो ने क्या किया इस विषय में जानना चाहते है | 

धृतराष्ट्र इस बात को भी जानते थे कि पान्डु पुत्र का स्वभाव पुण्यात्मा जैसा है | धृतराष्ट्र और पान्डु पुत्र एक वंश से संबंधित थे किन्तु धृतराष्ट्र ने जानबुझकर अपने पुत्रो को कुरु कहा और पान्डु के पुत्रो को वंश के उत्तराधिकार से विलग कर दिया | 

वर्तमान स्थिति - आज वर्तमान में भी आपको इससे संबंधित विषय वस्तु देखने को मिल जाएगी जहां अपने ही वंश के दोनों भाई होते है वह अपने भतीजे को खुश देखना नहीं चाहते, यदि बड़े भाई के पुत्रो का बल अधिक हो तो वह छोटा भाई व उसके परिवार को चैन से जीने नहीं देते |  इसकी को श्रीकृष्ण अधर्म बताते है |

धर्म की एवं जीवन का एक मात्र ईश्वर की अमृत वाणी आज ही लाये अपने घर | 

श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप << क्लिक करें)